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कुशल, वीर, साहसी और आनके लिए प्राण देनेकी तालीम देनेवाला एक बहुत बड़ा गुरु है । जिन्होंने बताया है कि, जैनधर्मको धारण करनेवाला अन्याय और अत्याचारका मुकाबिला करनेके लिए असीम साहसी और वज्रतुल्य कठोर भी होता है और स्नेह एवं सौजन्यके सामने अत्यंत नम्र और कुसुमके समान कोमल भी होता है; जिन्होंने बताया है कि जैनधर्मधारक जुल्मियोंको कषायरहित होकर, तलवारके घाट भी उतार सकता है और मौका पड़नेपर हँसते हँसते अपने प्राण भी दे सकता है। जिन्होंने दुनियाको दिखाया है कि, जैनी राजा बनकर राज्यकी रक्षा कर सकता है, मंत्री बनकर सुचारु रूपसे राज्यतंत्र चला सकता है, व्यापारी बनकर देशको समृद्धि बढा सकता है, न्यायासनपर बैठकर दूधका दूध और पानीका पानी कर सकता है, युद्ध में जाकर तलवारके जौहर दिखा सकता है, धन पाकर नम्रता पूर्वक उस धनको प्रजाकी भलाईके लिए खर्च सकता है विद्या पाकर प्रजाजीवनको उन्नत बनानेमें और साहित्यकी अभिवृद्धि करनेमें उसका उपयोग कर सकता है; और साधु बनकर संयम, नियम, तप और त्यागका महान आदर्श और मुक्तिप्राप्तिका सर्वोत्तम मार्ग संसारको दिखा सकता है। उन सभीको मैं जैनोंके रत्न समझता हूँ। और ऐसे रत्नोंका जीवन-संग्रह इस ग्रंथमें किया जाय । यही जैनरत्नको योजनाका मुख्य उद्देश है।। __ ऐसे रत्न तीर्थकर हुए है, चक्रवर्ती आदि राजा हुए हैं, मंत्री हुए हैं, आचार्य हुए हैं, साधु हुए हैं श्रावक हुए हैं, और श्राविकाएँ हुई हैं। वर्तमानमें भी ऐसे रत्नोंकी कमी नहीं है । इसलिए प्रत्येक खंडके दो विभाग किये गये हैं।
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