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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित Wuuuwwuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu मरकर मेघरथ और दृढरथ मुनि सर्वार्थसिद्धि देवलोकमें या देवता हुए और वहाँपर तेतीस सागरोपमकी - आयु सुखसे बिताई। इस जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें कुरुदेशके अन्दर हस्तिनापुर ___नामक एक बड़ा वैभवशाली नगर था । उसमें १३ तेरहवाँ इक्ष्वाकु वंशी विश्वसेन नामक राजा राज्य करता भव ( भगवान था । वह राजा धर्मात्मा, प्रजापालक, पराक्रमी शांतिनाथ )* और वीर था। उसकी धर्मपत्नीका नाम अचिरा देवी था। महादेवी अचिरा बड़ी पति-परायणा और रूपगुण सम्पन्ना थी। नृपशिरोमणि विश्वसेन अपनी धर्मपत्नीके साथ साम्राज्य लक्ष्मी भोगते थे। एक दिन अनुत्तर विमानमें मुख्य सर्वार्थसिद्धि नामके विमानसे च्यवकर पूर्वजन्मके राजा मेघरथका जीव महादेवीके कोखमें आया । उस समय रातको अचिराने चक्रवर्ती और तीर्थकरके जन्मकी सूचना देनेवाले चौदह महा स्वप्न देखे । प्रातःकाल ही महादेवीने पतिसे स्वप्नोंका सारा वृतान्त वर्णन किया। राजाने कहाः-" हे महादेवी ! तुम्हारे अलौकिक गुणोंवाला एक पुत्र होगा।" राजाने स्वमके फलको जाननेवाले निमित्तियोंको बुलाकर स्वमका फल पूछा । उन्होंने उत्तर दिया:-" स्वामिन् ! इन * ये ही पाँचवें चक्रवर्ती भी थे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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