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________________ (ङ) भटकते देख श्रीनाभि कुलकरके पास लाते हैं। नाभि कुलकर बालि काको, उसका वृत्तान्त जानकर, ग्रहण करते हैं और सबको पूछकर, सबकी सम्मतिसे, सबके सामने कहते हैं कि, बड़ी, होनेपर यह सुनंदा श्री ऋषभदेवकी पत्नी होगी। उस समय प्रभु बालक थे, सुनंदा भी बालक थी । प्रभु बालिका सुमंगला और सुनंदाके साथ बड़े होते हैं । योग्य उम्रके होनेपर इन्द्र और इन्द्राणियाँ मिलकर प्रभुके साथ दोनोंका ब्याह कराते हैं। तभीसे प्रभुके साथ पतिपत्नीका व्यवहार चालू होता है । यह बात आवश्यक चूर्णि, आवश्यक टीका, जंबूद्वीप पन्नति और त्रिषष्टि शलाकाचरित्रमें साफ तौरमे लिखी हुई है, तो भी यह कह देना कि प्रभुने विधवाब्याह किया था, कितना निंद्य और तिरस्करणीय है सो कहनेवालोंको खुद सोच लेना चाहिए। जिनको मूल पाठ देखना हो वे ऊपर जिन ग्रन्थोंके नाम दिये हैं उनमेंसे कष्ट करके देख लें। टीकाकारोंने कितना सुंदर खुलासा किया है वह भी देखनेसे साफ साफ मालूम हो जायगा । कहनेवालों को यह भी ध्यानमें रखना चाहिए कि जगद्वंदनीय प्रभु विधवाविवाह जैसा घृणित कार्य कभी कर ही नहीं सकते । __ यह खुलासा इसलिये करता हूँ कि शास्त्रोंके सबल प्रमाण मौजूद होते हुए भी परमार्थको जाने बगैर यद्वा तद्वा शास्त्रोंके नामसे उछल पड़ना और दुनियामें असत्य फैलाना इससे आत्मकल्याण नहीं है । भद्रिक आत्माएँ शास्त्रोंके वचनोंका परमार्थ न समझते होनेसे सत्य मान लेते हैं । इसलिये भवभीरु आत्माओंके लिये यह खुलासा सशास्त्र वचन प्रमाणसे किया गया है। सर्वे दुनियाका व्यवहार को दिखलानेवाले प्रभुके लिये इस तरह कहना यह सर्वथा सत्यसे दूर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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