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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित १६३ तक इसकी पत्नी होकर रही । अब ब्रह्मचर्यव्रत लेकर अकेली रहना चाहती हूँ । कृपाकर मुझे उससे छुट्टी दिलाइए।" राजाने कपिलको बुलाकर कहा:-" तेरी पत्नी अब संसार-सुख भोगना नहीं चाहती । इसलिए इसको अलहदा रह कर धर्मध्यान करने दे।" कपिलने कहा:-" राजन् पतिके जीते पत्नीका अलहदा रहना अधर्म है । स्त्रीका तो पतिकी सेवा करना ही धर्मध्यान है । मैं अपनी पत्नीको अलहदा नहीं रख सकता।" सत्यभामा बोली:-"ये मुझे अलहदा न रहने देंगे तो मैं आत्महत्या करूँगी। इनके साथ तो हरगिज न रहूँगी।" राजा बोला:-" हे कपिल ! यह प्राण देनेको तैयार है। इससे तू इसको थोड़े दिन मेरी राणियोंके साथ रहने दे। वे पुत्रीकी तरह इसकी रक्षा करेंगी। जब इसका मन ठिकाने आ जाय तब तू इसे अपने घर ले जाना ।" इच्छा न होते हुए भी कपिलने सम्मति दी । सत्यभामा अनेक तरहके तप करती हुई अपना जीवन बिताने लगी। ___ कौशांबीके राजा बलके श्रीकांता नामकी एक कन्या थी। जवान होनेपर उसका स्वयंवर हुआ । श्रीषेणके पुत्र इन्दुषेणको कन्याने पसंद किया। दोनोंका ब्याह हुआ । श्रीकांता जब सुसरालमें आई तब उसके साथ अनंतमतिका नामकी एक वेश्या भी आई थी। उस वेश्याके रूपपर इंदुषेण और बिंदुषेण दोनों मुग्ध हो गये । फिर उसको पानेके लिए दोनोंने यह फैसला किया कि, हम द्वंद्व युद्ध करें । जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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