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१३ श्री विमलनाथ - चरित
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वदि ६ के दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में केवलज्ञान पाया । इन्द्रादि देवोंने ज्ञानकल्याणक मनाया ।
प्रभुके शासन में ५७ गणधर, ६८ हजार साधु, १ लाख ८ सौ साध्वियाँ, १ हजार एक सौ चौदह पूर्वधारी, ४ हजार ८ सौ अवधिज्ञानी, ९ हजार ५ सौ मन:पर्ययज्ञानी, ५ हजार ५ सौ वैयिलब्धिधारी, २ लाख ८ हजार श्रावक, ४ लाख ३४ हजार श्राविकाएँ, षडमुख नामक यक्ष, और विदितां शासन देवी थे ।
अपना मोक्षकाल समीप जान प्रभु सम्मेदाचलपर आये और छः हजार मुनियोंके साथ एक मासका अनशनत्रत धारण कर आषाढ वदि ७ के दिन मोक्षमें गये । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक किया ।
१५ लाख वष कुमार वयमें, ३० लाख वर्ष तक राज्य कार्यमं, और १५ लाख वर्ष संयममें इस तरह ६० लाख वर्षकी आयु भोग प्रभु मोक्षमें गये । उनका शरीर ६० धनुष ऊँचा था ।
वासुपूज्य जीके ३० सागरोपम बाद विमलनाथजी मोक्षमें गये । इनके तीर्थमें स्वयंभू वासुदेव, भद्र नामक बलदेव और मेरक प्रति वासुदेव हुए ।
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