SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ श्री अभिनंदन स्वामी-चरित १२७ सिद्धार्था राणीने महा सुदि २ के दिन पुत्ररत्नको जन्म दिया। इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक किया। उनका लांछन वानरका था और वर्ण सोनेके समान था। प्रभु जब गर्भ में थे तब सारे नगरमें अभिनंदन (हर्ष) ही अभिनंदन हुआ था इसलिए पुत्रका नाम अभिनंदन रक्खा। __ युवा होनेपर राजाने अनेक राजकन्याओंके साथ उनका व्याह किया। साढ़े बारह लाख पूर्वतक उन्होंने युवराजकी तरह संसारका सुख भोगा। फिर संवर राजाने दीक्षा ली और अभिनंदन स्वामीको राज्यासनपर बिठाया । आठ अंग सहित साढ़े छत्तीस लाख पूर्व तक उन्होंने राज्यधर्मका पालन किया। फिर जब उनको दीक्षा लेनेकी इच्छा हुई तब लोकांतिक देवोंने आकर प्रार्थना की:-" स्वामी ! तीर्थ प्रवर्ताइए।" तब सांवत्सरिक दान देकर महा सुदि १२ के दिन अभिचि नक्षत्र सहसाम्र वनमें छह तप सहित प्रभुने दीक्षा ली । इन्द्रादिदेवोंने दीक्षाकल्यणक किया। दूसरे दिन प्रभुने इन्द्रदत्त राजाके घर पारणा किया। अनेक स्थानोंपर विहार करते हुए प्रभु फिरसे सहसाम्रवनमें आये । वहाँ छह तप करके रायण (खिरणी) के झाड़के नीचे काउसग्ग किया । शुक्ल ध्यान करते हुए उनके घातिया कर्मोंका नाश हुआ और पोस सुदि १४ के दिन अभिचि नक्षत्रमें उनको केवलज्ञान हुआ। इन्द्रादि देवोंने समवसरणकी रचना की । प्रभुने सिंहासनपर बैठकर देशना दी और उत्पाद, व्यय एवं ध्रुवमय त्रिपदीकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy