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________________ २ श्री अजितनाथ-चरित ११५ वह कहाँ जाता है । सुलक्षणा बिचारी बड़ी दुखी हुई । मगर क्या करती ? उसका कोई वश नहीं था । वह रो रोकर अपने दिन निकालने लगी। __ चौमासा निकट आया तब विपुला नामक साध्वीजी उसके घर चौमासा निर्गमन करनेके लिए आई । सुलक्षणाने उन्हें रहनेका स्थान दिया । साध्वीकी संगतिसे सुलक्षणाका उद्वेगमय मन शान्त हुआ और उसने सम्यक्त्व ग्रहण किया । साध्वीने सुलक्षणाको धर्मशिक्षा भी यथोचित दी। चातुर्मास बीतने पर साध्वीजी अन्यत्र विहार कर गई । सुलक्षणा धर्मध्यानमें अपना समय बिताने लगी। ___ कुछ कालके बाद शुद्धभट द्रव्य कमाकर अपने घर आया। उसने पूछा:-"प्रिये! तुने मेरे वियोगको कैसे सहन किया?" उसने उत्तर दिया:-"मैं आपके वियोगमें रात दिन रोती थी। रोनेके सिवा मुझे कुछ नहीं सूझता था । अन्नजल छूट गया था।थोड़े जलकी मछलीकी तरह तड़पती थी । दावानलमें फँसी हुई हरिणीकी तरह मैं व्याकुल थी। शरीर सूख गया था । जीवनकी घड़ियाँ गिनती थी। ऐसे समयमें विपुला नामक एक साध्वीजी चातुर्मास बितानेके लिए यहाँ आई। उनका आना मेरे हृद्रोगको मिटानेमें अमृतसम फलदायी हुआ। उन्होंने मुझे धर्मोपदेश देकर शान्त कर दिया । समयपर उन्होंने मुझे सम्यक्त्व धारण कराया। यह सम्यक्त्व संसार-सागरसे तैरनेमें नौकाके समान है।" ब्राह्मण ने पूछा:-"वह सम्यक्त्व क्या है ?" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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