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________________ २ श्री अजितनाथ-चरित १०१ किसी प्रकारका कष्ट नहीं हुआ । बिजलीके प्रकाशके समान कुछ क्षणके लिए तीनों भुवनमें उजाला हो गया । क्षण वारके लिए उस समय नारकी जीवोंको भी सुख हुआ। चारों दिशा ओंमें प्रसन्नता हुई। लोगोंके अन्तःकरण प्रात:कालीन कमलकी भौति विकसित हो गये। दक्षिण वायु मंद मंद बहने लगी। चारों तरफ शुभसूचक शकुन होने लगे। कारण, महात्माओंके जन्मसे सब बातें अच्छी ही होती हैं। ___ छप्पन कुमारिकाओंके आसन काँपे और वे प्रभुकी सेवामें आईं । इंद्रादि देवोंके आसन विकंपित हुए । चौसठ इन्द्रोंने आकर प्रभुका जन्मकल्याणक किया। उसी रातको वैजयंतीने भी, जैसे गंगा स्वर्णकमलको प्रकट करती है वैसे ही एक पुत्रको जन्म दिया । जितशत्रु राजाको यथा समय समाचार दिये गये । राजाने बड़ा हर्ष प्रकट किया। उसने प्रसन्नताके कारण राज-विद्रोहियों, और शत्रुओं तकको छोड़ दिया । शहरमें ये समाचार पहुँचे । आनंद-कोलाहलसे नगर परिपूर्ण हो गया। बड़े बड़े सामन्त और साहूकार लोग आ आकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजाको भेट देने लगे। किसीने रत्नाभूषण, किसीने बहु मूल्य रेशमी और सनके वस्त्र, किसीने शस्त्रास्त्र, किसीने हायी घोड़े और किसीने उत्तमोत्तम कारीमरीकी चीजें भेट की। राजाने उनकी आवश्यकता न होते हुए भी अपनी प्रजाको प्रसन्न रखनेके लिए सब प्रकारकी भेटें स्वीकार की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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