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२ श्री अजितनाथ-चरित
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उनका इन स्थानकोंका आराधन था । इनसे और अन्यान्य तीर्थकर नामकर्म उपार्जन करनेवाले स्थानकोंका x आराधन करके, तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया । उन्होंने एकावली, रत्नावली और 'ज्येष्ठ सिंहनिष्क्रीडित' तथा 'कनिष्ठ सिंहनिष्क्रीडित' आदि उत्तम तप किये । F अन्तमें उन्होंने दो प्रकारकी संलेखना और अनशन व्रत ग्रहण करके पंच परमेष्ठीका ध्यान करते हुए उस देहका त्याग किया। वहाँसेमरकर राजाविमलवाहनका जीव 'विजय' नामके अनुत्तर
विमानमें, तेतीस सागरोपमकी आयु वालादेव
हआ।वहाँके देवताओंका शरीर एक हाथका
__होता है। उनका शरीर चन्द्रकिरणों के समान उज्ज्वल होता है। उन्हें अभिमान नहीं होता । वे सदैव सुखशय्या सोते रहते हैं। उत्तरक्रियाकी शक्ति रखते हए भी उसका उपयोग करके वे दूसरे स्थानों में नहीं जाते । वे अपने अवधिज्ञानसे समस्त लोकनालिका (चौदह राजलोकका) अवलोकन किया करते हैं। वे आयुष्यके सागरोपमकी संख्या जितने पक्षोंसे, यानी तेतीस पक्ष बीतनेपर, एक बार श्वास लेते हैं। तेतीस हजार बरसमें एक बार उन्हें भोजनकी इच्छा होती है। इसी प्रकार विमलवाहन राजाके जीवका भी काल बीतने लगा। जब आयुमें छः महीने बाकी रहे तब दूसरे देवताओंकी तरह उन्हें मोह न हुआ, प्रत्युत पुण्योदयके निकट आनेसे उनका तेज और भी बढ़ गया। x देखो पेज ५०-५१ F तपोंका हाल जाननेके लिए देखो-' श्री तपोरत्न महोदधि'
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