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श्रीअजितनाथ चरित।
अहंतमजितं विश्व-कमलाकरभास्करम् ।
अम्लानकेवलादर्श-संकातजगतं स्तुवे ॥ "संसाररूपी कमलसरोवरको प्रकाशित करनेमें सूर्यके समान और जगत्को अपने निर्मल केवलज्ञान द्वारा जाननेमें दर्पणके समान श्रीअजितनाथ स्वामीकी मैं स्तुति करता हूँ ।"
१ प्रथम भव-समस्त द्वीपोंके मध्यमें नाभिके समान जम्बूद्वीप है। उसमें महाविदेह क्षेत्र है। इस क्षेत्रमें हमेशा 'दुखमा सुखमा' नामका चौथा आरा * वर्तता है। इसी क्षेत्रमें सीता नामक एक बड़ी नदी थी। उसके दक्षिण तटपर वत्स नामका देश था । वह बहुत समृद्धिशाली था । उसमें सुसीमा नामकी नगरी थी । उसकी सुंदरताको देखकर देखनेवाले स्वर्गकी कल्पना करने लगते थे । कई कहते थे पातालस्थ असुर देवोंकी यह भोगावती नगरी है । कई कहते थे यह देवताओं की अमरावती है जो स्वर्गसे यहाँ उतर आई है और कई कहते थे यह तो उन दोनोंकी छोटी बहन है। पाताल और स्वर्गमें उन्होंने अधिकार किया है । इसने मनुष्य लोकमें अपना स्थान बनाया है।
* देखो तीर्थकर चरितभूमिका,-पज ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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