SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीआदिनाथ-चरित बैठकर धर्मदेशना दी। तत्पश्चात् सभी अपने अपने स्थानपर चले गये। इस प्रकार तीर्थकी स्थापना होनेपर प्रभुके पास रहनेवाला 'गोमुख ' नामका यक्ष प्रभुका अधिष्ठायक देवता हुआ । इसी भाँति प्रभुके तीर्थमें उनके पास रहनेवाली प्रतिचक्रा नामकी देवी शासन देवी हुई, जिसे हम चक्रेश्वरीके नामसे पहिचानते हैं। महर्षियों-साधुओंसे परिवृत्त प्रभुने वहाँसे विहार किया। उनके केश, डाढ़ी और नाखून बढ़ते नहीं थे । प्रभु जहाँ जाते थे वहाँ वैर, मरी, ईति, अदृष्टि, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि और स्वचक्र और परचक्रसे होनेवाला भय-ये उपद्रव नहीं होते थे। __ सुंदरीको भरतने दीक्षा नहीं लेने दी, इससे वे घरहीमें आंबिल करके हमेशा रहती थीं । भरत जब छः खंड पृथ्वीको विजय करके आये तब उन्होंने सुंदरीकी कृश मूर्ति देखी । उसका कारण जाना और उन्हें दीक्षा लेनेकी आज्ञा दे दी। उस समय अष्टापदपर प्रभुका समवसरण आया हुआ था। सुंदरीने वहाँ जाकर प्रभुके पाससे दीक्षा ले ली। भरत छ: खंड पृथ्वी विजय करके आये तब उन्होंने अपने भाइयोंसे भी कहलाया कि तुम आकर हमारी सेवा करो। अठानवे भाइयोंने उत्तर दिया कि, हम भरतकी सेवा नहीं करेंगे। राज्य हमें हमारे पिताने दिया है। तत्पश्चात उन्होंने प्रभुके पास जाकर सारी बातें निवेदन की। प्रभुने उन्हें धर्मोपदेश देकर संयम ग्रहण करनेकी सूचना की । तदनुसार उन्होंने संयम ग्रहण कर लिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy