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श्रीआदिनाथ-चरित
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लोग भी मर्यादाका उल्लंघन करते हैं। और दूसरोंका तिरस्कार करते हैं। माया कोंचकी फलीकी तरह लोगोंको सन्तप्त करती है; परन्तु फिर भी लोग मायाका परित्याग नहीं करते हैं। तुषोदक से ( बहेड़ाके जल से ) जैसे दुग्ध फट जाता है और काजलसे जैसे निर्मल-सफेद वस्त्र पर दाग लग जाते हैं वैसे ही, लोभ मनुष्यके गुणोंको दूषित करता है । जब तक संसार रूपी काराग्रहमें (जेलखानेमें ) ये चार कषायरूपी चौकीदार सजग (खबरदारीसे ) पहरा देते हैं तबतक जीव इससे निकलकर मोक्षमें कैसे जा सकता है ? अहो ! भूत लगेहुए प्राणीकी तरह पुरुष अंगना के ( स्त्री के ) आलिंगनमें व्यग्र रहते हैं और यह नहीं देखते हैं कि, उनका आत्महित क्षीण हो रहा है । औषधसे जैसे सिंहको आरोग्य करके मनुष्य अपना काल बुलाता है वैसे ही मनुष्य जुदा जुदा प्रकारके मादक और कामोद्दीपक पदार्थ सेवनकर उन्मादी बन अपने आत्माको भवभ्रमणमें फँसाते हैं । सुगंध यह है या यह ? मैं किसको ग्रहण करूँ ? इस तरह सोचता हुआ मनुष्य लंपट होकर भ्रमरकी तरह भटकता फिरता है । उसको कभी सुख नहीं मिलता। खिलोनेसे जैसे बच्चोंको भुलाते हैं वैसे ही मनुष्य क्षण वारके लिए मनोहर लगनेवाली वस्तुओंमें लुभाकर अपने आत्माको धोखा देते हैं। निद्रालु पुरुष जैसे शास्त्रके चिन्तनसे भ्रष्ट होता है वैसे ही मनुष्य वेणु (बंसी) और वोणाके नादमें कान लगाकर अपने आत्महितसे भ्रष्ट होता है । एक साथ प्रबल बने हुए वात, पित्त और कफ जैसे जीवनका अन्त कर देते
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