SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 35 हैं । अतः प्रथम तीर्थकर पुनीत तीर्थ पर पधार कर वर्षीयतप का पारना कर जन्म सफल कीजिए । श्री शान्तिनाथ जी श्री कुन्थुनाथ जी श्री अरनाथ जो १६ वें १७वें और १८वें तीर्थंकरों के चार चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान १२ कल्याणक इसी पुण्य भूमि में हुए हैं, जो चक्रवर्ती भी थे, १९ वें तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ जी का समवसरण, २० वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत्तस्वामीजी से कात्तिक शेठ की १००८ सेठियों के साथ दीक्षा और २४वें अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी द्वारा पोट्टिल और शिवराजर्षी को दीक्षा का सौभाग्य इसी हस्तिनापुर को प्राप्त है । हस्तिनापुर की प्राचीन खोज —— कौरव पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर थी, महाभारत पुराणादि ग्रंथों में इस नगर की बहुत व्याख्या है । स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् भारत सरकार के प्राचीन इतिहास को खोज में तत्पर है, अतः हस्तिनापुर को भी महत्व दिया गया है । सन १८५०-५१ में टीला उल्टा खेडा की खुदाई पुरातत्व विभाग नई देहली ने की है, जहाँ पर ऐतिहासिक और प्राचीन वस्तुएं और जैन मूर्ति निकली हैं, हस्तिनापुर को २५००-३००० वर्ष पहिले का बसाहुआ नगर बताया जाता है। जैन ग्रंथों में यह नगर इतिहास लिखे जाने से पहिले का ( Prehistoric ) स्थान है । अभी यहाँ पर बहुत से स्थान ऐसे हैं, जिन पर पुरातत्व विभाग को ध्यान देना चाहिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034866
Book TitleJain Pilgrimage
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
PublisherHastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
Publication Year1951
Total Pages60
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy