SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) करवा कर पुराने समय में जैन लोग जैन मन्दिरों में रखते एवं लगाया करते थे । इस पट्ट के नीचे प्राचीन लिपि में एक शिलालेख भी खुदा हुआ है । उसकी नकल यह है :"नमोअरहंताणं सिंहकस्स वणिकस्स ( पुत्तेन ) कोसिकी पुत्त' सिंहनादिकेन यागपटो थापितो अरिहंत पूजाय" यह लेख प्राकृत भाषा में है । इसका भाव यह है कि सिंहक नामक वणिक की कौशकी नामक भार्या का पुत्र सिंहनादक उसने अरिहंतों की पूजा के लिए इस पट्ट को स्थापित किया है । इसका समय देखो चित्र में । २ - लाल पत्थर का छत्ता -- यह सब प्रकार से अखंडित है । इसमें पत्थर पर जो काम है उसे देख कर तबियत खुश हो जाती है। अनुमान है कि यह किसी मूर्ति के ऊपर लगा हुआ होगा ? यह भी बहुत प्राचीन है । ३ - दरवाजा की बाजु - मथुरा से पश्चिम ७ मील पर मोरीमय ग्राम के खण्डहरों में मिला है इनके ऊपर का काम भी खास देखने काबिल है । ४ - सूर्य की प्रतिमा - जिस बैठक पर यह मूति है उसकी बनावट बहुत ही अच्छी है । मूर्त्ति के एक एक हाथ में कमलपुष्प है । यह मूर्त्ति कंकाली टीला से नहीं किन्तु केशवजी के मन्दिर से मिली है । ५ - श्रमण मूर्ति - यह एक तरफ से खण्डित जैन श्रमण कृष्णर्षि की मूर्त्ति है ( इससे जैन श्रमणों के वेष का ठीक पता मिल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034865
Book TitleJain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy