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( १४ ) यह सौभाग्य का विषय है कि शोध खोज करने पर उस स्तूप का भी पता लग गया । ई. सन् १८९० में खोद काम करते समय यह स्तूप निकल पाया। इन बातों से पुरातत्व के पण्डितों ने यह अनुमान किया है कि यह स्तूप ईश्वी सन् से कई सदियों पहिले बन चुका था। और विद्वानों का यह भी मत है कि “यह इमारत इस देश में बहुत पुराणी है। क्या जैन मतियों और स्तूपों के लिए अब भी प्रमाणों की आवश्यकता है ?
५-ई० सन् १८९५ में भी डाक्टर फुहरर ने कंकाली टीला को खोदवा कर कई प्राचीन चीजें निकाली। उनमें अहम् महावीर की भी एक परे कद की मूर्ति थी; जिस पर २९९ वें संवत् का एक शिलालेख है। यह संवत् कनिष्क, हविष्क और वासुदेव आदि कुशान वंशो राजाओं का है। अभी तक इस सन का आरंभ ईस्वी सन् ७८ वें वर्ष से माना जाता था और विद्वानों का मत था कि इसे कनिष्क ने चलाया होगा। पर जब से यह शिलालेख मिला तब से विद्वानों का वह मत बदल गया। अब उनका खयाल है कि यह सम्बत् ईसा के ५० वर्ष पहिले प्रचलित हुआ होगा।
६-डाक्टर फुहरर ने कंकाली टीला के लेख और प्रसिद्धप्रसिद्ध पदार्थों की प्रतिलिपियाँ और चित्र डॉ. बुलर को भेजे थे। उन्होंने वे सब शिलालेख और चित्र “एपि प्राफिया इन्डका" में प्रकाशित किये हैं और उनके सम्बन्ध में आपने स्वतंत्र विद्वत्तापूर्ण अनेक लेख भी लिखे हैं। इन शिलालेखों और चित्रों से
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