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________________ ( १३ ) वर्षों की निकली हुई चीजों में से कुछ चीजों का उल्लेख डाक्टर साहब ने इस प्रकार किया है कि : १-पत्थर के ७३७ टुकड़े जिन पर बहुत ही अच्छा नकाशी का काम खुदा हुआ है। इनमें पटियों, चौरपटे, खंभे, तोरण, दरवाजे और मूर्तियां वगैरह भी शामिल हैं और शिल्पकलाविदों की जाँच से वे बहुत ही प्राचीन प्रमाणित होती हैं। २-इन खण्डहरों में से ६२ टुकड़े ऐसे हैं जिन पर शिलालेख खुदे हुए हैं। वे शिलालेख ईसा के डेढ सौ वर्ष पहिले से लेकर ई० सन् १०२३ तक के हैं। ३-इनमें एक लेख ऐसा है जिसके अक्षर उस लेख से भी बहुत पुराणे हैं जो कि ईसा के १५० वर्ष पूर्व खोदा गया था। यह लेख एक मन्दिर का है। इसमें मन्दिर बनाने वाले का नाम भी है । इससे यह प्रमाणित होता है कि ईस्वी सन् से कई शताब्दियें पहले भी मथुरा में जैन मन्दिर विद्यमान थे । उस मन्दिर के ऊपर का काम यह सिद्ध करता है कि दो ढाई हजार वर्ष पूर्व भी इस देश में शिल्पकला अपनी उत्कृष्टता को पहुँची हुई थी। ४-एक और शिलालेख मिला है जो एक मूर्ति की बाँई तरफ खुदा हुआ है। उसमें लिखा है कि यह मूर्ति ईस्वी सन् १५६ वर्ष पूर्व स्थापित हुई थी और यह मूर्ति एक ऐसे स्तूप के हत्ते में थी, जिसको कि स्वयं देवताओं ने बनाया था । इससे जान पड़ता है कि जिस समय यह शिलालेख खोदा गया था उस समय इसमें उल्लिखित स्तूप को बने हुए को इतने बर्ष हो गये थे कि शिलालेख खोदने के समय वे लोग उस स्तूप को बनाने के काल को बिलकुल भूल गए थे । फिर भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034865
Book TitleJain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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