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केशीश्रमणाचार्य. के पावविषादमें आत्मशकियोंका दुरुपयोग होने लगा. यह कर्म और पशु हिंसको का फिर जौर पढने लगा धार्मिक और सामाजिक श्रृंखलनायेंमें भी परावर्तन होने जगा.
यह सब हाल उत्तर भरतमें रहे हुवे केशीश्रमणाचार्यने सुना तब दक्षिण भरतमें विहारकरनेवाले मुनियों को अपने पास बुलवा लिया अधपि कितनेक मुनि रह भी गये थे. दक्षिणविहारी मुनि उत्तरमें आने पर कुच्छ अरसा के बाद वहां भी बह ही हालत हुई कि जो दक्षिणमे थी। इधर आचार्यश्री घर की बिगडी सुधारने में लग रहे थे उधर पशुहिंसक • यक्षवादीयोंने अपना जोर को बढ़ाने में प्रयत्नशील बन यज्ञका प्रचार करने लगे. घरकी फूटका यह परिणाम हुवा कि एक पिहित मुनिका शिष्य जिस्का नाम बुद्ध कीर्ति था उसने समुदायसे अपमानीत हो जैन धर्मसे पतित हो अपना बौद्ध नामसे बोद्ध धर्म का प्रचार करना शरु किया । बुद्ध कीर्तिने अपने धर्म के नियम पसे सिधे और सरल रखे कि हरेक साधारण मनुष्य भी उसे पाल सके बन्धन तो वह किलो प्रकारका
१ जैन श्वेताम्बर आम्नाय के आचारांग सूत्र कि टीकामें बुद्ध धर्म का प्रवर्तक मुल पुरुष बुद्धकीर्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में एक साधु था जिसने बोद्ध धर्म चलाया.
२ दिगम्बर आम्नायका दर्शनसार नामका ग्रन्थमे लिखा है कि पार्श्वनाथ के तीर्थ में पिहित मुनिका शिष्य बुद्धकीर्ति साधु जैन धर्म से पतित हो मांस मट्टि भाचारण करता हुवा अपना नामसे बोद्ध धर्म चलाया है. ___बोद्ध ग्रन्थोंमें लिखा है कि बुद्ध एक राजा शुद्धोदीत का पुत्र था वह तापसों के पास दीक्षा लीथी बोधि होनेके बाद अहिंसा धर्म का खुब प्रचार कीया था इसका समय भगवान महावीर के समकालिन माना जाता हे कुच्छ भी
हो. बुद्धने जैनोंसे अहिंसा धर्म की शिक्षा जरुर पाई थी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com