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पए मात्रनी भूल नहीं है. और जो कुछ किसी प्राचा. र्यके भूल जानेसे अन्यथा लिखानी गया हो तो नी अतिशय ग्यानी विना कोन सुधार सके; इस वास्ते तहमेव सचं जं जिणेहिं पन्नत्तं, इस पाठके अनुयायी रहना चाहिये.
प्र. ७-जैन मतमै जिसको सिद्धांत तथा आगम कहते है, वै कौनसे कौनसे है. और तिनके मूल पाठ ? नियुक्ति नाष्य ३ चूमि । टीका ए के कितने कितने ३२ बत्तीस अकर प्र. माण श्लोक संख्याहै, यह संदेपसे कहो.
न.-इस कालमें किसी रूढिके सबबसें ४५ पैंतालीस आगम कहै जातेहै, तिनके नाम और पंचांगोके श्लोक प्रमाण आगे लिखे हुए, यं. त्रसे जान लेने. और इनमें विषय विधेय इस तरेका है. आचारंगमें मूल जैन मतका स्वरूप,
और साधुके आचारका कथन है. १ सूयगमांगमे तीनसौ ३६३ त्रेस मतका स्वरूप कथनादि वि. चित्र प्रकारका कथनहै २ गणांगमें एकसें लेके दश पर्यंत जे जे वस्तुयो जगतमेंहै तिनका क
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