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२३२ है, इस वास्ते इसका नामन्त्री धर्मही
लिखाहै ॥ इति प्रश्रम धर्म नेद॥१॥ एकधर्मशमी इस वन समान बौका धर्म है, खेजमो वंबू क्योंकि ब्रह्मचर्यादि कितनीक सत् व कीकर ख/क्रिया और ध्यान योगाभ्यासादिकके दिर वेरी करी करनेसे मरां पी व्यंतर देवताकी ग. रादि करके तिमे नत्पन्न होनेसे कुबक शुन्न सुख मिश्रित वनारूप फल नोगमें देताहै, तथा चोक्तं समानहै यह बौः शास्त्रे ॥ मृदीशय्या प्रातरुवाय वन विशिष्टपेया॥ नक्तं मध्ये पानकंचा परान्हे ॥ शुन्न फल नदादा पाणं शकराच ईरात्रौ ॥ मोकही देता है श्वांत शाक्य पुत्रेण दृष्टः ॥१॥ मणुन किंतु सांगरोलोयणं, नुच्चा मणुनं, सयणासणं म वव्वूल फला-गुन, सिगारंसि मणुनं, कायए दि सामान्य मुणी ॥॥ इत्यादि॥ बौइ मतके शा नोरस फल देत्रानुसारे अपने शरीरको पुष्ट करना, तेहै, सांगरो मनके अनुकूल आहार, शय्यादिकके पक्को शुष्क नोगसें और बोइनिङके पात्रमें कोई हुइ हो कि-मांस दे देवे तो तिसकोनो खा लेनां,
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