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और तिस नागमेंनी ऐसीयां अकस्मात् भूले तथा खामोयों मालुम होती है, के जैसे कोइ कं वायको दंत कथाकों हाल में लिखता हुआ बोचमे रही जाए ऐसें हम धार सक्ते है, यह परिणाम (आय) प्रोफेसर जेकोबी और मेरी माफक जे सखस तकरार करता होवे के जैन दंत कथा ( जैन श्वेतांबर के लिखे हुए शास्त्रोंको वात ) टीकाके असाधारण कायदे हेठ नही रखनी चाहि ये, अर्थात् तिसमेके इतिहास सबंधी कथनो अ श्रवा दूसरे पंथोकी दंतकथामेसें मिली हुई दूसरी स्वतंत्र खबरोंसें पुष्टो मिलती होवे तो, सो माननी चाहिये; और जो ऐसी पुष्टो न होवे तो जैनमनकी कहनी [ स्यादवा ] तिसकों लगानी चाहिये, तैसें सखसोंकों नत्तेजन देनेवाला है. क ल्पसूत्रकी साथे मथुरां के शिला लेखोंका जो मि लतापणा है, सो दूसरी यह बातमी तब लाता है कि इस मथुरां सहरके जैनलोक श्वेतांबरी थे। इति मातर बूलर || अब दम [इस ग्रंथ के कर्त्ता ] भी इन लेखोंकों वांचके जो कुछ समऊ है सोइ
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