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१७४ नाम ए इस्वर नाम ए१ अनादेय नाम ए अ यश नाम ए३ ये तिरानवे नेद नाम कर्मके है. अब इनका स्वरूप लिखतेहै. गतिनाम कर्म जिस कर्मके नदयसें जीव नरक १ तिर्यच २ मनुष्य ३ देवताकी गति पर्याय पामें, नरकादि नाम कहनेमें आवे, और जीव मरे तब जिस गतिका गतिनामकर्म, आयुकर्म मुख्यपणे और गतिनाम कर्म सहचारी होवे है, तब जीवको आकर्षण क रके ले जातेहै, तब वो जीव तिस गति नाम और आयु कर्मके वश हुआ थका जहां उत्पन्न होना होवे तिस स्थानमें पहुंचेहै. जैसे मोरेवाली सूरको चमक पाषाण प्राकर्षण का है और साच मक पाषाणकी तर्फ जाती है, मोरानी सूश्के सायही जाताहै, इस तरे नरकादि गतियोंका स्थान चमक पाषाण समान है, आयु कर्म और गतिना म कर्म लोहकी सूई समान है, और जीव मोरे समान है बीचमें पोया हुआहै, इस वास्ते परन्नवमें जीवकों आयु और गतिनाम कर्म ले जातेहै, जैसा २ गतिनाम कर्मका जीवांने बंध करा है,
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