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अपनी राजगद्दी ऊपर बैगया, सो संप्रति नामे राजा हुआहै, श्रेणिक १ कोणिक २ नदायि ३ यह तीनो तो जैनधर्मी थे, नब नंदोकी मुझे ख बर नही, कौनसा धर्म मानते थे. चंगुप्त १ बि उसार ए दोनो जैनी राजे थे, अशोकश्रीनी जैनराजा था, पीसें केश्क बौक्ष्मति हो गया कह तेहै, और संप्रति तो परम जैनधर्मीराजा था.
प्र. १२ए-संप्रति राजाने जैनधर्मके वास्ते क्या क्या काम करेथे.
न.-संप्रतिराजा सुहस्ति आचार्यका श्राबक शिष्य १२ वारां व्रतधारी था, तिसने इविम अंध्र करणाटादि और काबुल कुराशानादि अनार्य देशोमें जैनसाधयोका बिहार करके तिनके नपदेशसे पूर्वोक्त देशोमें जैनधर्म फैलाया, और नि नानवे एए000 हजार जीर्म जिन मंदरोंका न.
ार कराया, और बव्वीस २६००० हजार नवीन जिनमंदिर बनवाए थे, और सवाकिरोम १२५00000 जिन प्रतिमा नवीन बनवाई थी, जिनके बनाए हुए जिनमंदिर गिरनार नझोलादि
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