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१०७ यह जगत विचित्ररूप प्रवाहसें चला हुआ नत्पाद व्यय ध्रुव रूपसें इसी तरे चला जायगा.
प्र. १२०--श्री महावीरस्वामीए तीर्थकरोको प्रतिमा पूजनेका उपदेश कराहै के नहो ?
न.-श्री महावीरजीने जिन प्रतिमाकी पूजा ये और नावेतो गृहस्थकों करनी बता. यिहै, और साधूयोंकों नावपूजा करनी बताइहै.
प्र. १५१-जिन प्रतिमाकी पूजा विना जिनकी नक्ति हो शक्तोहै के नहो ?
न.-प्रतिमा विना नगवंतका स्वरूप स्मरण नही हो सक्ताहै, इस वास्ते जिन प्रतिमा विना गृहस्थलोकोसे जिनराजकी नक्ति नही हो सक्तीहै.
प्र. १२२-जिन प्रतिमातो पाषाणादिककी बनी हुश्है, तिसके पूजने गुणस्तवन करनेसे क्या लान्न होताहै ?
न.-हम पर जानके नही पूजतेहै, किंतु तिस प्रतिमा धारा साक्षात् तीर्थकर नगवंतकी पूजा स्तुति करतेहै. जैसे सुंदर स्त्रोकी तसबीर
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