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करकें प्रकाश्याहै. आचारंगके लेख लिखनेवालेका यह अभिप्रायहै कि श्रुःोदनका पुत्र सर्वज्ञ अतिशयमान् पुरुष नही था, परंतु इन दोनों शिष्योने अपनी कल्पनासें सर्वसें नत्तम प्रकाशित करा, इस वास्ते बौद्धमत स्वरूचिसें बनायाहै; तथा श्री आचारंगजीकी टीकामें एक लेख ऐसानो लिखा है, तज्ञनिकोपासकोनेंदबलात् , बुद्धोत्पत्ति कथानकात् द्वेषमुपगत्. अर्थ बुधका नपासक आनंद तिसकी बुद्धिके बलसें बुधकी नत्पत्ति हूश्दै, जेकर यह कथा सत्यसत्य पर्षदामें कथन करोये तो बौक्ष्मतके मानने वालोंकों सुनके इष नत्पन्न होवे, इस वास्ते जिस कथाके सुननेसें श्रोताकों क्षेष उत्पन होवे तैसी कथा जैनमुनि परिषदामें न कथन करे, इस लेखसें यह आशय हैकि बुधकी नुत्पतिरूप सच्ची कथा बुधकी सर्वझता और अति उत्तमता और सत्यता और तिसकी कल्पित कथाकी विरोधनीहै, नहीतो तिसके नक्तोंकों द्वेष क्यों कर नत्पन्न होवे, इस वास्ते जैन मत इस अवसप्पिणिमे श्री ज्ञषनदेवजीसे
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