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जैन धर्म की उदारता करता है । ग्रन्थकार ने भी ऐसे मुग्धजनों के इस कार्य को सुखकारी बतलाया है।
इसी प्रकार और भी अनेक कथायें शास्त्रों में भरी पड़ी है जिनमें शूद्रों को वही अधिकार दिये गये हैं जो कि अन्य वर्णों को हैं। ____ सोमदत्त माली प्रति दिन जिनेन्द्र भगवान की पजा करता था। चम्पानगर का एक ग्वाला मुनिराज से णमोकार मन्त्र सीख कर स्वर्ग गया। अनंगसेना वेश्या अपने प्रेमी धनकीर्ति सेठ के मुनि हो जाने पर स्वयं भी दीक्षित हो गई और स्वर्ग गई । एक ढीमर (कहार) की पुत्री प्रियंगुलता सम्यक्त्व में दृढ़ थी । उसने एक साधुके पाखण्ड की धज्जियाँ उडादी और उसेभी जैन बनाया था। काणा नाम की ढीमर की लड़की को क्षुल्लिका होने की कथा तो हम पहिले ही लिख आये हैं । देविल कुम्हार ने एक धर्मशाला बनवाई, वह जैनधर्म का श्रद्धानी था । अपनी धर्मशाला में दिगम्बर मुनिराज को ठहराया । और पुण्य के प्रताप से वह देव हो गया। चामेक वेश्या जैनधर्म की परम उपासिका थी । उसने जिन भवन को दान दिया था । उस में शूद्र जाति के मुनि भी ठहरते थे । तेली जाति की एक महिला मानकव्वे जैन धर्म पर श्रद्धा रखती थी, आर्यिका श्रीमती की वह पट्ट शिष्या थी। उसने एक जिनमन्दिर भी बनवाया था।
इन उदाहरणों से शूद्रों के अधिकारों का कुछ भास हो सकता है। श्वेताम्बर जैन शास्त्रों के अनुसार तो चाण्डाल जैसे अस्पृश्य कहे जाने वाले शूद्रों को भी दीक्षा देने का वर्णन है। चित्त और संभति नामक चाण्डाल पुत्र जब वैदिकों के तिरस्कार से दुखी हो कर आत्मघात करना चाहते थे तब उन्हें जैन दीक्षा सहायक हुई और जनों ने उन्हें अपनाया। हरिकेशी चाण्डाल भी जब वैदिकों
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