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जैनधर्म में शद्रों के अधिकार क्रमशः विशुद्ध होता हुआ महावीर स्वामी की पर्याय में आया । इन उदाहरणों से जैनधर्म की उदारता का कुछ ज्ञान होसकता है। यह बात दूसरी है कि वर्तमान जैन समाज इस उदारताका उपयोग नहीं कर रही है । इसीलिए उसकी दिनों दिन अवनति हो रही है। यदि जैन समाज पुनः अपने उदार धर्म पर विचार करे तो जैनधर्म का समस्त जगत में अद्भुत प्रभाव जम सकता है।
जैनधर्म में शूद्रों के अधिकार । .. इस पुस्तक में अभी तक ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा चुके हैं जिनसे ज्ञात हुआ होगा कि घोर से घोर पापी, नीच से नीच
आचरण वाले और चांडालादिक दीन हीन शद्र भी जैनधर्म की शरण लेकर पवित्र हुये हैं । जैनधर्म में सब को पचाने की शक्ति है। जहां पर वर्ण को अपेक्षा सदाचार को विशेष महत्व दिया गया है वहां ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्रादिक का पक्षपात भी कैसे होसकता है ? इसी लिऐ कहना होगा कि जैनधर्म में शद्रों को भी वही अधिकार हैं जो ब्राह्मणादि को हो सकते हैं शद्र जिन मन्दिर में जा सकते हैं, जिन पूजा कर सकते हैं, जिन बिम्ब का स्पर्श कर सकते हैं, उत्कृष्ट श्रावक तथा मुनि के व्रत ले सकते हैं । नीचे लिखी कुछ कथाओं से यह बात विशेष स्पष्ट हो जाती है । इन बातों से व्यर्थ ही न भड़क कर इन शास्त्रीय प्रमाणों पर विचार करिये।
श्रेणिक चरित्र में तीन शूद्ध कन्याओं का विस्तार से वर्णन है उनके घर में मुर्गियां पाली जाती थीं । वे तीनों नीच कुल में उत्पन्न हुई थी और उनका रहन सहन, प्राकृति आदि बहुत ही खराब थी । एक वार वे मुनिराज के पास पहुंची और उनके उपदेश से प्रभावित हो अपने उद्धार का मागे पूछा । मुनिराज ने उन्हें लब्धि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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