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उदारता के उदाहरण
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बाहर
निकाल दिया (२१-७३) चारुदत्त व्यापार करने चले गये । फिर वापिस आकर घर में आनन्द से रहने लगे । बसन्तसेना वेश्या भी ना घर छोड़कर चारुदत्त के साथ रहने लगी । उसने एक आर्यिका के पास श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे अतः चारुदत्त ने भी उसे सहर्ष अपनाया और फिर पत्नी बनाकर रखा (२१-१७६) बाद में वेश्या सेवी चारुदत्त मुनि होकर सर्वार्थसिद्धि पधारे तथा उस वेश्या को भी सद्गति मिली।
इस प्रकार एक वेश्या सेवी और वेश्या का भी जहां उद्धार हो सकता हो उस धर्म की उदारता की फिर क्या पूछना ? मजा तो यह है कि चारुदत्त उस वेश्या को फिर भी प्रेम सहित अपना कर अपने घर पर रख लेता है और समाज ने कोई विरोध नहीं किया । मगर आजकल तो स्वार्थी पुरुष समाज में ऐसे पतितों को एक तो पुनः मिलाते नहीं हैं, और यदि मिलावें भी तो पुरुष को मिलाकर विचारी स्त्री को अनाथिनी, भिखारिणी और पतिता बनाकर सदा के लिये निकाल देते हैं। क्या यह निर्दयता जैनधर्म की उदारता के सामने घोर पाप नहीं है ?
६ - व्यभिचारिणी की सन्तान - हरिवंश पुराण के सर्ग २९ की एक कथा बहुत ही उदार है। उसका भाव यह है कि तपस्विनी ऋषिदत्ता के आश्रम में जाकर राजा शीलायुध ने एकान्त पाकर उससे व्यभिचार किया (३९) उसके गर्भ से ऐणी पुत्र उत्पन्न हुआ । प्रसव पीड़ा से ऋषिदत्ता मर गई और सम्यक्त के प्रभाव से नागकुमारी हुई । व्यभिचारी राजा शीलायुध दिगम्बर मुनि होकर स्वर्ग गया (५७)
ऐणीपुत्र की कन्या प्रियंगुसुन्दरी को एकान्त में पाकर वसुदेव ने उसके साथ काम क्रीड़ा की (६८) और उसे व्यभिचारजात जानकर भी अपनाया और संभोग करने के बाद सब के सामने
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