________________
अत्याचारी दण्ड विधान सकता है और पतित को पावन किया जा सकता है ।
जैनियो ! इस उदारता पर विचार करो, तनिक २ से अपराध करने वालों को जो धुतकार कर सदा के लिये अलहदाकर देते हो यह जुल्म करना छोड़ो और श्राचार्य वाक्यों को सामने रखकर अपराधी बंधुका सच्चा न्याय करो। अब कुछ उदारता की भावश्यक्ता है और प्रेम भाव की जरूरत है। कारण कि लोगों को तनिक ही धक्का लगाने पर उन से द्वेष या अप्रीति करने पर वे घबड़ा कर या उपेक्षित होकर अपने धर्म को छोड़ बैठते हैं ! और दूसरे दिन ईसाई या मुसलमान हो कर किसी गिरजाघर या मसजिद में जा कर धर्म की खोज करने लगते हैं । क्या इस ओर समाज ध्यान नहीं देगी ? ___ हमारी समाज का सब से बड़ा अन्याय तो यह है कि एक ही अपराध में भिन्न २ दण्ड देती है । पुरुष पापी अपने बलात्कार या छल से किसी स्त्री के साथ दुराचार कर डाले तो स्वार्थी समाज उस पुरुष से लड्डु खाकर उसे जाति में पुनः मिला भी लेती है मगर वह स्त्री किसी प्रकार काभी दण्ड देकर शुद्ध नहीं की जाती! वह विचारी अपराधिनी पंचों के सामने गिड़गिड़ाती है, प्रायश्चित्त चाहती है, कठोर से कठोर दण्ड लेने को तैयार होती है, फिर भी उसकी बात नहीं सुनी जाती, चाहे वह देखते ही देखते मुसलमान या ईसाई क्यों न हो जाय । क्या यही न्याय है, और यही धर्म को उदारता है ? यह कृत्य तो जैनधर्म की उदारता को कलंकित करने वाले हैं।
__ अत्याचारी दण्ड विधान । जैन शास्त्रों में सभी प्रकार के पापियों को प्रायश्चित्त दे कर शुद्ध कर लेने का उदारतामय विधान पाया जाता है । मगर खेद है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com