________________
जैन धर्म की उदारता
अर्थात् - वह कार्तिकेय भक्तिपूर्वक मुनिराज को नमस्कार करके स्वर्गदायी दीक्षा को लेकर जिनेन्द्रोक्त सप्ततत्त्वों के ज्ञाता मुनि होगये ।
२०
इस प्रकार एक व्यभिचारजात या आज कल के शब्दों में दस्सा या बिनैकावार व्यक्ति का मुनि होजाना जैन धर्म की उदारता का ज्वलन्त प्रमाण है । वह मुनि भी साधारण नहीं किन्तु उद्भट विद्वान और अनेक ग्रन्थों के रचयिता हुये हैं जिन्हें सारी जैनसमाज बड़े गौरव के साथ आज भी भक्तिपर्वक नमस्कार करते है । मगर दुःख का विषय है कि जाति मद में मत्त होकर जैनसमाज अपने उदार धर्म को भूली हुई है और अपने हज़ारों भाई बहनों को अपमानित करके उन्हें विनैकावार या दस्सा बनाकर सदा के लिये मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देती है । वर्तमान जैन समाज का कर्तव्य है कि वह स्वामी कार्तिकेय की कथा से कुछ बोधपाठ लेवे और जैनधर्म की उदारता का उपयोग करे | कभी किसी कारण से पतित हुये व्यक्ति को या उसकी सन्तान को सदा के लिये धर्म का अनधिकारी बना देना घोर पाप है । भावी संतानको दूषित न मानकर उसी दोषी व्यक्ति को पुनः शुद्ध कर लेने बाबत जिनसेनाचार्य ने इस प्रकार स्पष्ट कथन किया हैकुतश्चित् कारणाद्यस्य कुलं संप्राप्तदूषणं । सोऽपि राजादिसम्मत्या शोधयेत् स्वं यदा कुलम् ॥ १६८ तदास्योपनयार्हत्वं पुत्रपौत्रादिसंततौ ।
न निषिद्धं हि दीक्षा कुले वेदस्य पूर्वजाः ॥ १६६ आदि पुराण पर्व ॥ ४० ॥
अर्थ-यदि किसी कारण से किसी के कुलमें कोई दूषण लग जाय तो वह राजादिकी सम्मति से अपने कुलको जब शद्ध कर लेता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com