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जैनधर्म की उदारता
ही दीक्षा लेकर अच्युत स्वर्ग में गये । शिवभूति ब्राह्मण की पुत्री देववती के साथ शम्भू ने व्यभिचार किया, वाद में वह भ्रष्ट देववती विरक्त होकर हरिकान्ता नामक आर्यिका के पास गई और दीक्षा लेकर स्वर्ग को गई । वेश्यालंपटी अंजन चोर तो उसी भव से मोक्ष जाकर जैनियों का भगवान बन गया था। मांस भक्षी मृगध्वज ने मुनि दीक्षा ले ली और वह भी कर्म काटकर परमात्मा बन गया । मनुष्य भक्षी सौदास राजा मुनि होकर उसी भव से मोक्ष गया । इत्यादि सैकडों उदाहरण मौजूद हैं । जिनसे सिद्ध होता है कि जैन धर्म पतित पावन है । यह पापियों को परमात्मा बना देने वाला है और सबसे अधिक उदार हैं ।
जैन शास्त्रों में धर्मधारण करने का ठेका अमुक वर्ण या जाति को नहीं दिया गया है किन्तु मन वचन काय से सभी प्राणी धर्म धारण करने के अधिकारी बताये गये हैं । यथा" मनोवाक्कायधर्माय मताः सर्वेऽपि जन्तवः
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- श्री सोमदेवसूरिः ।
ऐसी ऐसी आज्ञायें, प्रमाण और उपदेश जैन शास्त्रों में भरे पड़े हैं; फिर भी संकुचित दृष्टि वाले जाति मद में मत्त होकर इन बातों की परवाह न करके अपने को ही सर्वोच्च समझ कर दूसरों के कल्याण में जबरदस्त वाधा डाला करते हैं । ऐसे व्यक्ति जैन धर्म की उदारता को नष्ट करके स्वयं तो पाप बन्ध करते ही हैं साथ ही पतितों के उद्धार में अवनतों की उन्नति में और पदच्युतों के उत्थान में बाधक होकर घोर अत्याचार करते हैं ।
उनको मात्र भय इतना ही रहता है कि यदि नीच कहलाने वाला व्यक्ति भी जैनधर्म धारण कर लेगा तो फिर हम में और उसमें क्या भेद रहेगा ! मगर उन्हें इतना ज्ञान नहीं है कि भेद
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