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________________ ( ५० ) मिलता: इतने पर भी जो लोग विधवाविवाह को बड़ा पाप समझते हैं उनकी समझ की बलिहारी । साराँश यह है कि विधवा विवाह न तो कोई पाप है, न कोई महत्वपूर्ण बात है जिससे उसका उल्लेख शास्त्रों में किया जाता । के -जब यह बात सिद्ध हो चुकी कि विधवाविवाह जैनशास्त्रों अनुकूल और पुरानी प्रथा है तब इस बात की ज़रूरत नहीं है कि दोनों कालोंकी परिस्थितिमें अन्तर दिखलाया जाय, फिर भी कुछ अन्तर दिखला देना हम अनुचित नहीं समझतेःपहिले ज़माने में विवाह तभी किया जाता था जब मातापिता देख लेते थे कि इनमें एक तरह का रागभाव पैदा हो गया है, जिसको सीमित करने के लिये विवाह श्रावश्यक है, तब वे विवाह करते थे। परन्तु आजकल के माता - पिता समय में ही बिना ज़रूरत विवाह कर देते हैं; बस फिर उनकी बला से । पहिले ज़माने में भ्रूणहत्याएँ नहीं होती थीं । परन्तु श्राजकल इन हत्याओं का बाज़ार गर्म है I 1 पहिले ज़माने में अगर किसी स्त्री से कोई कुकर्म हो जाता था तो भी वह और उसकी संतान जाति से पतित नहीं मानी जाती थी। उनकी योग्य व्यवस्था की जाती थी। ज्येष्ठा श्रार्थिका का उदाहरण काफ़ी होगा। उस समय जैनसमाज में जन्म संख्या की अपेक्षा मृत्युसंख्या अधिक नहीं थी । विधवा स्त्रियोंके साथऐसे अत्याचार नहीं होतेथे; जैसे कि श्राजकल होते हैं। इस प्रकार अन्तर तो बहुत से हैं, परन्तु प्रकरण के लिये उपयोगी थोड़ेसे अन्तर यहाँ लिख दिये गये हैं। प्रश्न (३१) - सामाजिक नियम अथवा व्यवहार धर्म श्रावश्यकतानुसार बदल सकता है या नहीं ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat • ご www.umaragyanbhandar.com
SR No.034860
Book TitleJain Dharm aur Vividh Vivah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha
Publication Year1931
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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