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________________ ( ४२ ) बाद प्रथम विवाह में दिये धन को वापिस लेकर दूसरी शादी के लिये आशा देवे | पढ़ने के लिये बाहर गये हुए ब्राह्मणों की पुत्ररहित स्त्रियाँ दश वर्ष और पुत्रवती स्त्रियाँ बारह वर्ष तक प्रतीक्षा करें। यदि कोई व्यक्ति राजा के किसी कार्य से बाहर गये हों तो उनकी स्त्रियाँ श्रायु पर्यंत उनकी प्रतीक्षा करें। यदि किसी समान वर्ण ( ब्राह्मणादि ) पुरुष से किसी स्त्री के बच्चा पैदा होजाय तो वह निन्दनीय नहीं । कुटुम्ब की सम्पत्ति नाश होने पर अथवा समृद्ध बन्धुबांधवों से छोड़े जाने पर कोई स्त्री जीवन निर्वाह के लिये अपनी इच्छा के अनुसार अन्य विवाह कर सकती है। प्रकरण ज़रा लम्बा है; इसलिये हमने थोड़ा भाग ही दिया है। इसमें विधवाविवाह और सधवा विवाह का पूरा समर्थन किया है। यह है सवा दो हज़ार वर्ष पहिले की एक जैन नरेश की राज्यनीति । श्रगर चन्द्रगुप्त जैनी नहीं थे तो भी उस समय का यह श्राम रिवाज मालूम होता है । श्राचार्य सोमदेव ने भी लिखा है - विकृत पत्यूढापि पुनर्विवाहमर्हतीति स्मृतिकाराः - श्रर्थात् जिस स्त्री का पति विकारी हो, वह पुनर्विवाह की अधिकारिणी है, ऐसा स्मृतिकार कहते हैं। सोमदेव श्राचार्य ने ऐसा लिखकर स्मृतिकारों का बिल्कुल खण्डन नहीं किया है, इससे सिद्ध है कि वे भी पुनविवाह से सहमत थे । इसी रीति से सोमसेन ने भी लिखा - उनने गालव ऋषि के बचन उद्धृत करके विधवाविवाह का समर्थन किया है । प्रश्न ( २८ ) – अगर किसी अबोध कन्या से कोईबलात्कार करे तो वह कन्या विवाह योग्य रहेगी या नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034860
Book TitleJain Dharm aur Vividh Vivah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha
Publication Year1931
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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