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पिता आदि नरक में जा सकते हैं ? यदि मान लिया जाय कि उस रक्त में वैसी शक्ति है तो क्या विवाह कर देने से वह नष्ट हो जाती है ?
उत्तर-रजस्वला के रक्त में सम्यग्दर्शन नष्ट करने की ताकत नहीं है । अविवाहित अवस्था में रजोदर्शन होने से पाप बन्ध नहीं, किन्तु पुण्य बंध होता है। क्योंकि जितने दिन तक ब्रह्मचर्य पलता रहे उतने दिनतक, अच्छा ही है। हाँ, अगर कोई कन्या वा विधवा, विवाह करना चाहे और दूसरे लोग उसके इस कार्य में बाधा डालें तो वे पाप के भागी होते हैं, क्योंकि इससे व्यभिचार फैलता है। गर्भधारण की योग्यता व्यर्थ जाने से पाप का बंध नहीं होता, क्योंकि यदि ऐसा मानो जायगा तो उन राजाओं को महापापी कहना पड़ेगा जो सैकड़ों स्त्रियोको छोड़कर मुनि बन जाते थे और रजोदर्शन बन्द होने के पहिले आर्यिका बनना भी पाप कहलायगा । विधवा विवाह के विरोधी इस युक्ति से भी महापापी कहलायेंगे कि वे विधवाओं की गर्भधारण शक्ति को व्यर्थ जाने देते हैं। जो लोग यह समझते हैं कि 'रजोदर्शन के बाद गर्भाधानादि संस्कार न करने से माता पिता संस्कारलोपक और राजनमार्गलोपी हो जाते हैं" वे संस्कार का मतलब ही नहीं समझते । विवाह भी तो एक संस्कार है; फिर जिन तीर्थंकरों ने विवाह नहीं कराये वे क्या संस्कार लोपक और जिनमार्गलोपी थे ? ब्राह्मी और सुन्दरी जीवनभर कुमारी ही रहीं तो क्या उनके पिता भगवान ऋषभदेव और माता मरुदेवी, भाई भरत, बाहुबली आदि नरक गये? ये लोग भी क्या जिनमार्गलोपी ही थे? गर्भाधानादि संस्कार तभी करना चाहिये जब कि स्त्री
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