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________________ (२४ ) सार नियत विधि नहीं होती, फिर भी वह विवाह है और उस विवाह से उत्पन्न संतान मोक्षगामी तक होती है। इसी विवाह से रुक्मणीजी कृष्णजी की पटरानी बनी थीं और उनसे तद्भव मोक्षगामी प्रद्यम्न पैदा हुए थे। इसलिये शास्त्रानुसार विधि हो या न हो, परन्तु जहाँ पर उपयुक्त दो बातें होगी वहाँ पर धर्मानुकूलता है और उनके बिना धर्मविरुद्धता है। प्रश्न (१३)-विधवा होने के पहिले जिन्होंने पत्नीत्व का अनुभव नहीं किया, उन्हें विधवा कहना कहाँ तक उचित है ? उत्तर-१२ में प्रश्न के उत्तर में इसका भी उत्तर प्रो सकता है । वहाँ कही हुई दो बातों के बिना जो विवाहनाटक होजाता है उसके द्वारा उन दोनों बच्चों को पति पत्नीत्व का अनुभव नहीं होता। वे नाटकीय पति पत्नि कहलाते हैं । ऐसी हालत में अगर वह नाटकीय पति मरजाय तो वह नाटकीय पत्नी नाटकीयविधवा कहलायेगी। पत्नीत्व के व्यवहार और पत्नीत्व के अनुभव में बहुत अन्तर है । व्यवहार के लिये तो चारों निक्षेप उपयोगी हो सकते हैं, परन्तु अनुभव के लिये सिर्फ भावनिक्षेप ही उपयोगी है। बालविवाह के पति-पत्नी व्यवहार में स्थापना निक्षपसे काम लिया जाता है। जो लोग उसे भाव निक्षेप समझ जाते हैं अथवा व्यवहार और अनुभव के अन्तर को नहीं समझते, उनकी विद्वत्ता (१) दयनीय है। प्रश्न (१४)-क्या पत्नी बनने के पहिल भी कोई विधवा हो सकती है ? और पत्नी बनकर व्रत ग्रहण करने में वती के भावों की ज़रूरत है या नहीं? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034860
Book TitleJain Dharm aur Vividh Vivah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha
Publication Year1931
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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