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जैन-धर्म
[२५] सम्प्रदाय से, एक जाति दूसरी जाति से, एक पार्टी दूसरी पार्टी से, और यहां तक कि एक भाई दूसरे भाई से इसलिये लड़ता है कि उससे भिन्न सम्प्रदाय, जाति, पार्टी या भाई के विचार उसके विचारों से मित्र हैं, उसके अनुकूल नहीं।
मतभेद और दृष्टिकोण को भिन्नतामात्र से धर्म के नाम पर प्राचीन समय में भी जो लोगों ने साम्प्रदायिकता के नशे में मत्त हो कर अपने से भिन्न सम्प्रदाय और विचार के निरपराध लोगों पर जो असंख्य और निर्मम अत्याचार किये हैं, एवं उन्हें जिंदा जला कर, कोल्हू में पेल कर, तलवार के घाट उतार कर, दीवारों में चिनवा कर और खाल खींच भुस भरवा अपने इन राक्षसी कृत्यों द्वारा धर्म के पवित्र नाम को कलंकित कर इतिहास के पृष्ठों को रक्तरंजित किया है वह सभी विज्ञ पाठकों से छिपा नहीं है। ईसाइयों के रोमन कैथलिक और प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदायों में परस्पर जो खूनखराबियां हुई और हिन्दुओं में बुद्धदेव को चौबीसवां अवतार स्वीकार कर लिये जाने पर भी जो शङ्कराचार्य के ज़माने में बौद्ध और जैन लोगों पर भीषण अत्याचार किये गये, एवं मुसलमानों ने जो इस्लाम का प्रचार प्रेम से करने की अपेक्षा तलवार के ज़ोर से करने का दुष्प्रयत्न कर अपने से भिन्न मतानुयायियों पर असंख्य अत्याचार किये, तथा उन्हें काफिर बता कर मौत के घाट उतारा, यह सब साम्प्रदायिकता का दुष्फल नहीं तो और क्या था ? जिसकी कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति भर्त्सना किये बिना नहीं रह सकता।
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