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जैन-धर्म
[१७ ] बिना किसी भेदभाव के प्राणीमात्र के सम्पूर्ण क्लेशों का अन्त कर उसे सच्चा सुख प्रदान करने तथा हाहाकारमय अशांत विश्व में शांति का शानदार साम्राज्य स्थापित करने के लिये जोरों के साथ घोषणा करता हुआ
जैन धर्म संदेशदेता है कि सांसारिक विलासिता एवं ऐश परस्ती में सुख ढूंढने वाले भोले भाले मनुब्यो ! तुम जो संसार के विषय भोगों
और धनादिक संपदाओं को ही अपने जीवन का सर्वस्त्र बनाए हुए हो, तथा भाई भाई से, पुत्र पिता से, एक जाति दूसरी जाति से और एक देश दूसरे देश से कुत्तों की तरह लड़कर तथा निर्बलों पर अत्याचार करते हुए उनका खून चूस कर सुखी बनने की कोशिश कर रहे हो, वह तुम्हारा भ्रम है। वासना, पाप, अत्याचार, अन्याय, अनीति, पाखण्ड और स्वार्थान्धता जैसी शैतानियत भरी शरारतों से दुनियां में कभी भी और किसी भी बलवान से बलवान मनुष्य को सुख और शान्ति नहीं मिल सकती, बल्कि तुम जितने अंशों में पापों, अन्यायों, अत्याचारों और वासनाओं के मार्ग पर कदम बढ़ाओगे, उतने ही अंशों में अपने को भयानक अशान्ति व दुःख-सागर के भँवर के चक्कर में फंसे हुए पाओगे। आंखें खोल कर देखो, दुनियां में जो लोग स्वार्थान्ध हो कर पाप
और दूसरों पर अत्याचार करते हुए वासनाओं को तृप्त करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com