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[ १२ ] इस युग में भारतवर्ष का उत्तरदायित्व सब देशों की अपेक्षा अधिक हैं ; और भारतवर्ष में भी उस धर्म का उत्तरदायित्व अन्य सब धर्मों से अधिक है, जिस की बुन्याद विश्वप्रेम, विश्वसंवेदना और विश्वहित के अटल सिद्धांतों पर खड़ी है। निश्चय ही जैनधर्म सदा से इन सिद्धांतों का हामी रहा है और जो अन्य धर्म, या व्यक्ति अथवा वर्ग इन सिद्धांतों को अपनाते हैं, उनके साथ सदा सहयोग के लिए तत्पर है।
विश्वप्रेम, स्याद्वाद और विश्वहित के जिन सिद्धांतों को तथा जीवन की जिस चर्या को जैनधर्म ने अपने मूल में लेकर अपने आपका विश्वधर्म बनाया है, उनका प्रचार करना हम सब का कर्तव्य है। हमारी समाज के उदीयमान विद्वान श्री पंडित नाथूराम डोंगरीय जैन, 'अवनीन्द्र', न्यायतीर्थ ने इसी लक्ष्य को लेकर यह पुस्तक लिखी है। इस दिशा में जो भी कार्य किया जाये वह सदा ही सराहनीय है। मुझे आशा है कि पंडित जी की इस उपयोगी रचना का समुचित आदर होगा, और वह समय २ पर इस प्रकार की रचनाएँ जनता के सामने लाते रहेंगे जिससे सच्चे सुख और सच्ची शान्ति की खोज का मार्ग आसान बन जाये।
लाहौर, । ३ सितम्बर १९४०
-राजेन्द्र कुमार जैन ।
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