________________
[ ७ ] आपके चार पुत्र और दो कन्याएँ इस भांति ६ सन्ताने हुई । यद्यपि आपकी संतान की शिक्षा सामान्यरूप में ही हुई थी, परन्तु आपके चरित्र और शिक्षाओं का प्रभाव उस पर ऐसा पड़ा कि ज्येष्ठ पुत्र लाला मुरलीधर जी की गणना अपने अध्यवसाय से आज विद्वानों में है। आपके कनिष्ठ पुत्र लाला बनवारीलाल व दरबारीलाल जी भी एक कुशल व्यापारी हैं। आपकी संतान में लाला बाबूरामजी एक बड़े होनहार युवक थे ; परन्तु दुर्भाग्यवश आप असमय में ही अपने पीछे एक पुत्री व एक पुत्र चि० धर्मप्रकाश को छोड़ संसार से चल बसे ।
ला० शिखरचन्द्र जी की मधुर वाणी बड़ी ओजपूर्ण थी। आप जिससे एक बार बात कर लेते थे वह आपका होकर सर्वदा आपसे मिलने की इच्छा रखता रहा। आपकी वाणी में जादू का सा असर था। मुझे भली भांति ज्ञात है जब आप जैनधर्म की व्याख्या करते थे तो एक समा बँध जाता था। मैं प्रारम्भ से ही आर्यसमाजी हूँ , और मुझे प्रायः धार्मिक विषयों पर आपसे बात करने का अवकाश मिला करता था। मैंने आपसे जब २ ईश्वर कर्तृत्व पर बात की तो आप इस सुन्दरता के साथ “ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है", साबित कर देते थे कि मैं अवाक रह जाया करता था, और मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था कि ईश्वर जगतकर्ता नहीं है।
आप एक दीर्घ काय सुदृढ़ महानुभाव थे, जहां आप में प्रेम, अध्यवसाय, व्यापार कुशलता आदि गुण थे वहां आप एक
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com