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विषय सूचि
विषय
सम्पादक और प्रकाशक का निवेदन
जैन दर्शन में श्वेताम्बर तेरह - पन्थ
त्रस और स्थावर जीव समान नहीं हैं
मारा जाता हुवा जीव, कर्म की निर्जरा नहीं करता, किन्तु अधिक कर्म बाँधता है
श्रावक कुपात्र नहीं है
दान-पुण्य
दान करना पाप नहीं है जीव बचाना पाप नहीं है
तेरह - पन्थियों की कुछ भ्रमोत्पादक युक्तियाँ और उनका
समाधान - संख्या १ से ७ तक
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परिशिष्ट नं० १
थली में पाँच दिवस का प्रवास ('तरुण जैन' से उद्धृत ) श्री भग्न हृदय की चिट्ठी चिट्ठी-पत्री
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Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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परिशिष्ट नं० २
तेरह - पन्थ और 'जैन' पत्र (वे० मू० पू० 'जैन' में से अनुवादित ) 'चोपड़ाजी का तेरह - पन्थ इतिहास' परिशिष्ट नं० ३
तेरा-पंथ अने तेनी मान्यताओ ( गुजराती भाषा में ) लेखक - श्रीमान् चिम्मनलाल चक्कुभाई शाह
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१ से
१०
११ से ३४
३५ से
४९ से
८० से
४८
७९
९२
से १०९
११० से १२६
१२७ से १४६
१४७ से १६०
१६१ से १६७
१६८ से १७१
१७२ से १७६
J. P., M. A. LL B. सॉलिसीटर १७७ से १८२
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