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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान। उनका नहीं आना संवर है । ध्यान समाधिसे कोका क्षय करना निर्जरा है। सर्व कर्मोसे मुक्त होना, निर्वाण लाभ करना मोक्ष है। इन सात तत्वोंको श्रद्धानमें लाकर फिर साधक अपने आत्माको परसे भिन्न निर्वाण स्वरूप प्रतीत करके भावना भाता है। निरंतर अपने आत्माके मननसे भावोंमें निर्मकता होती है तब एक समय भाजाता है जब सम्यग्दर्शनके रोकनेवाले चार अनंतानुबन्धी कषाय और मिथ्यात्वका उपशम कर देता है और सम्पग्दशनको प्राप्त कर लेता है। जब सम्यग्दर्शनका प्रकाश झलकता है तब आत्माका साक्षात्कार होजाता है-स्वानुभव हो जाता है । इसी जन्ममें निर्वाणका दर्शन होजाता है । सम्यग्दर्शन के प्रतापसे सच्चा सुख स्वादमें आता है । अज्ञान सम्बन्धी राग, द्वेष, मोह सब चला जाता है, ज्ञान सम्बन्धी रागद्वेष रहता है । जब सम्यग्दृष्टी श्रावक हो अहिं.. सादि अणुव्रतोंको पालता है तब रागद्वेष कम करता है । जब वही . साधु होकर अहिंसादि महावतोंको पालता हुआ सम्यक् समाधिका मले प्रकार साधन करता है तब अरहंत परमात्मा हो जाता है। फिर मायुके क्षय होनेपर निर्वाण लाभकर सिद्ध परमात्मा होजाता है। पंचाध्यायी कहा हैसम्यक्तं वस्तुतः सूक्ष्म केवलज्ञानगोचरम् । गोचरं खावधिस्वान्तपर्ययज्ञानयोयोः ॥ ३७५ ॥ . अस्त्यात्मनो गुणः कश्चित् सम्यक्त्वं निर्विकल्पकं । . तद्द्दङ्मोहोदयान्मिथ्यास्वादुरूपमनादितः ॥ ३७५ ॥ . भावार्थ:-सम्यग्दर्शन वास्तवमें केवलज्ञानगोचर भति सूक्ष्म . गुण है या परमावधि, सर्वावधि व मनः पर्ययज्ञानका भी विषय है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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