________________
(७) मज्झिमनिकाय सम्यग्दृष्टि सूत्र ।
गौतमबुद्ध के शिष्य सारिपुत्रने भिक्षुओंको कहा-सम्यक्दृष्टि कही जाती है । कैसे मार्य श्रावक सम्यग्दृष्टि ( ठीक सिद्धांतवाला) होता है। उसकी दृष्टि सीधी, वह धर्ममें अत्यन्त श्रद्धावान, इस सधर्मको प्राप्त होता है तब भिक्षुओंने कहा, सारिपुत्र ही इसका मर्थ कहें।
सारिपुत्र कहने लगे- जब आर्य श्रावक अकुशल (बुराई) को जानता है, भकुशल मूल को जानता है, कुशल (मलाई) को जानता है, कुशल मूलको जानता है, तब वह सम्यक्दृष्टि होता है ।
इन चारों का भेद यह है । (१) प्राणातिपात (हिंसा) (२) अदत्तादान (चोरी), (३) काममें दुराचार, (४) मृषावाद (झूठ), (५) पिशुनवाद (चुगली), (६) परुष वचन (कटोर वचन), (७) संपलाप (बकवाद), (८) अभिव्या (लाम), (९) व्यापाद (प्रतिहिंसा), (१०) मिथ्यादृष्टि (झूठी धारणा) अकुशल हैं। ___(१) लोभ, (२) द्वेष, (३) मोह, अकुशल मूल हैं। इन ऊपर कही दश बातोंसे विरति कुशल है। (१) अलोम, (२) अद्वेष, (३) अमोह कुशल मूल है । जो आर्य श्रावक इन चारोंको जानता है वह राग-अनुशव (मल) का परित्याग कर, प्रतिध (पतिहिंसा या द्वेष) को हटाकर अस्थि (मैद) इस दृष्टिमान (धारणाके भाभिमान) अनुशयको उन्मूलन कर अविद्याको नष्ट कर, विद्याको उत्पन्न कर इसी जन्ममें दुःखोंका अन्त करनेवाला सम्यग्दृष्टि होता है।
जब मार्य श्रावक आहार, आहार समुदय (माहारकी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com