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मैन बोल तत्वान। [१] करता है, मिटाता है, उत्पन हुए व्यापाद वितर्क (द्रोहके रूमाल) का, उत्पन्न हुए. विहिंसा वितर्क (अति हिंसाके ख्याल) का, पुनः पुनः उत्पन होनेवाले, पापी विचारों (धर्मो)का स्वागत नहीं करता है। मिषभो ! जिसके न हटनेसे दाह और पीड़ा देनेवाले बांसव उत्तम होते हैं. और विनोद न करनेसे उत्पन्न नहीं होते। जैन सिद्धांतके कहे हुए भासव भावोंमें कषाय भी है जैसा ऊपर लिखा है कि मिथ्यात्व, भविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच आमवभाव हैं। कोष, मान, माया, लोभसे विचारोंको रोकनेसे कामभाव, द्वेषभाव, हिंसाभाव व अन्य पापमय भाव रुक जाते हैं। इसी सर्वासव -सूत्र में है कि भिक्षुमो! कौनसे भावना द्वारा प्रहातव्य पासव है ? भिक्षुओं! यहां (एक) भिक्षु ठोकसे जानकर विवेकयुक्त, विरागयुक्त, निरोधयुक्त मुक्ति परिणामकाले स्मृति संबोध्यंगकी भावना करता है। ठीकसे जानकर स्मृति, धर्मविचय, वीर्यविचय, प्रीति, प्रश्रब्धि, समाधि, उपेक्षा संबोध्यंगकी भावना करता है।
नोट-संबोधि परम ज्ञानको कहते हैं, उसके लिये जो अंग उपयोगी हो उनको संबोध्यंग बहने हैं, वे सात हैं-स्मृति (सत्यका स्मरण), धर्मविचय (धर्मका विचार!. वीर्यविचय (अपनी शक्तिका उपयोग करने का विचार), प्रीएि स्तोष), प्रश्रब्बि (शांति), समाधि (चित्तकी एकाग्रता), उपेक्षा (वैराय ) ।।
जन सिद्धांतमें संवरके कारणों में अनुमक्षाको ऊपर कहा गया है । वारवार विचारनेको या भावना करनेको अनुप्रेक्षा कहते हैं ।
वे भावनाएं बारह हैं उनमें स्वस्रव सूत्रमें कही हुई भावनाएं।
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