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दूसरा भाग। (५) सोना चांदी, धन धान्य, खेत मकान, दासीदास, गो मेंसादि, अनादिका त्याग परिग्रह त्याग महाव्रत है।
पांच समिति (१) ईर्यासमिति, दिनमें रौंदी भूमिपर चार हाथ जमीन आगे देखकर चलना, (२) भाषासमिति-शुद्ध, मीठी, सभ्य वाणी कहना, (३) एषणा समिति -शुद्ध भोजन संतोषपूर्वक भिक्ष द्वारा लेना, (४) आदाननिक्षेपण समिति-शरीरको व पुस्तकादिको देखकर उठाना धरना, (५) प्रतिष्ठापन समिति-मल मूत्रको निन्तु भूमिगर देखके करना ।
तीन गुप्ति-१) मनोगुप्ति-मनमें खोटे विचार न करके धर्म का विचार करना । (२) वचनगुप्ति-मौन रहना या प्रयोजन वश अल्प वचन कहना या धर्मोग्देश देना । (३) कायगुप्ति-कायको भासनसे प्रमाद रहित रखना ।
इस तेरह प्रकार चारित्रकी गाथा नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्तीने द्रव्यसंग्रहमें कही है
सुहादोविणिवत्तो सुहे पवित्तो य जाण चारित्त । बदस मिदिगुत्तरूव वहाणघा दु जिणमणियं ॥ ४५ ॥
भावार्थ -अशुभ बातोंसे बचना व शुभ बातोंमें चलना चास्त्रि है । व्यवहार नयसे वह पांच का गंव समिति तीन गुप्तिरूप कहा गया है।
सधुको मोक्षमार्गमें चलते हुए दश धर्म व बारह तपके साधनकी भी जरूरत है।
दश धर्म - "उत्तमक्षमामार्दवानवसत्यशौच संयमतपस्त्यागाचिन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः " तत्वार्थसूत्र १० ९ सूत्र ६।
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