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________________ २.६] मा माग । बहुत ही सुंदर वर्णन किया है बहुत सूक्ष्म हमे उस सत्रका मनन करना योग्य है। इस सूत्रमें नीचे प्रकार की बातोंको बताया है (१) सर्व संगार भ्रमण का मूल कारण पंचों इन्द्रियों के विषयोंके गगसे उत्पन्न हुआ विज्ञान है तथा इन्द्रियों के प्राप्त ज्ञानसे जो अनेक प्रकार म. में विला होता है सो मनोविज्ञान है । इन छहों प्रकार के विज्ञानका क्षय ही निर्वाग है। (२) रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान ये पांच स्कंध ही संसार हैं। एक दुसरे कारण है । रूप जड़ है, पांच चेतन है। • इसीको Matter and Mind कह सक्ते हैं। इन मन विकर रूप या में विराई वदना भादिकी उत्पत्तिका मूल कारण रूपों का ग्रहण है। ये उत्पन्न होने वाले हैं. नाश होनेवाले हैं, पराधीन हैं। (३) ये पांचों स्कंध उन म वंसी हैं। माने नहीं ऐसा ठीक ठीक जानना, विश्वास करना सम्यग्दर्शन है । जिस किसीको यह श्रद्धा होगी कि संसारका मूल कारण विषयों का राग है, यह राग त्यागने योग्य है वही सम्यग्दृष्टि है। यही आशय जैन सिद्धांतका है । सांसारिक भासबके कारण भाव तत्वार्थसूत्र छठे अध्यायमें इन्द्रिय, कपाय, अव्रतको कहा है। भाव यह है कि पांचों इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये हुए विषयों में नगर द्वेष होता है, वश क्रोध, मान, म.या लोम कषये जागृत होनाती हैं। कप.योंके अधीन हो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह ग्रहण इन पांच भवतोको करता है । इस म.सव का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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