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________________ जोन कैद तम्बान । वह आंखसे रूपको देखकर निमित्त ( माकृति मादि) और भनुव्यंजन (चिह) का ग्रहण करनेवाला नहीं होता। क्योंकि चक्षु इन्द्रियको भक्षित रख विहरनेवालेको राग द्वेष बुगइयां भकुशल धर्म उत्पन्न होने हैं। इसलिये वह उस्ले सुरक्षा रखता है, चक्षुइन्द्रिकी रक्षा करता है, क्षुइन्दिर में संवर ग्रहण करता है। इसी तरह श्रोत्र इन सुनकर, प्र णसे गंध ग्रहण कर, जिलामे रस प्रहण कर कायासे स्पर्श ग्रहण कर, मनसे धर्म ग्रहण कर निमित्तमाही नहीं होता है. उन्हें संवर युक्त रखता है। इस प्रकार वह आर्य इन्द्रिय संवरसे युक्त हो अपने भीतर निर्मल सुखको अनुपक्ष करता है। ___ वह माने जान्में जानकर करनेवाला (संगजन्य युक) होता है। अबलोकन विलोकनमें, मारने फलाने में, संघटी पात्र चीवरके धारण कर में, खानपान भोजन मास्वाद में, मक मूत्र विसर्जन, बाते खड़े होते, बैठने. सोते, जागते, बोलते, चुप रहने संरजन्य युक्त होता है। इस प्रकार वह आर्यम्मृति संपजन्यसे मुक्त हो अपने निर्मल सुखका अनुभव करता है। यह इप आर्य शील-कंधमे युक्त, इस मार्य इन्द्रिय संवरसे युक्त, इस अ.र्य मृत जनसे युक्त हो एकान्त में भरण्य, वृक्ष छाया, पर्वत कन्दरा, गिरिगुर, ३मशन, वन-प्रान्त, खुले मैदान या पुलालके गंज में वास करता है। वह भोजन के बाद प्रासन मारकर, कायाको सीधा रख, स्मृतिको सम्मुख ठहरा कर बैठता है । वह शो में अभिध्या (लोभको) छोड़ भाभिया रहित चित्तवाका हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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