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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । ते साधकत्वमधिगम्य भवन्ति सिद्धाः । मूढास्त्यमनुप भावार्थ- जो ज्ञानी सर्व प्रकार मोहको दूर करके ज्ञानमयी अपनी निश्चल भूमिका आश्रय लेते हैं वे मोक्षमार्गको प्राप्त होकर सिद्ध परमात्मा होजाते हैं, परन्तु अज्ञानी इस शुद्धात्मीक भावको न पाकर संसार में भ्रमण करते हैं । तत्वार्थसार में कहते हैं [ 700 परिभ्रमन्त ॥ २०-११ ॥ अकामनिर्जरा बाळतपो मन्दकषायता । सुधर्मश्रवणं दानं तथापतन सेवनम् ॥ ४२-४ ॥ सरागसंयमश्चैव सम्रक्त देशसंयमः । इति देवायुषो ह्येते भवन्त्यासत: ॥ ४३-४ ॥ भावार्थ- देव आयु बांधकर देवगति पानेके कारण ये हैं(१) अक्काम निर्जरा - शांति कष्ट भोग लेना, (२) बालतप-अत्मानुभव रहित इच्छाको रोकना, ३) मद वपाय- क्रोधादिकी बहुत कमी, (४) धर्मानुराग रहित भिक्षुका चारित्र पालना, (५) गृहस्थ श्रावक का संयम पालना, (६) दर्शन मात्र होना । सार समुच्चय में कहा है मात्मानं स्नापयेन्नित्यं ज्ञ नीरेण चारुगा । रोग निर्मतां याति जीवोन्मत पि ॥ ३१४ ॥ भावार्थ - अपने को सदा पवित्र ज्ञानपी जल से स्नान कराना चाहिये | इसी खान से यह जीव जन्म जन्म के मैल से छूटकर पवित्र होजाता है । १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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