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________________ १२६] दूसरा माग। है जो उसकी मरहंत व सिद्ध परमात्मा व साधुमें भक्ति हो, धर्ममाधनका उद्योग हो तथा गुरुओंकी माज्ञानुसार चारित्रका पालन हो। स्वामी कुंदकुन्दाचार्य प्रबनसारमें कहते हैंण हयदि समणोत्ति मदो संजमतवसुत्तसंपजुत्तोधि । जदि सद्दादि ण अत्थे मादयधाणे जिणक्खादे ।। ८५-३॥ भावार्थ-जो कोई साधु संयमी, तपस्वी व सूत्रके ज्ञाता हो परन्तु जिन कथित आत्मा मादि पदार्थोंमें जिसकी यथार्थ श्रद्धा नहीं है वह वास्तवमें श्रमण या साधु नहीं है। स्वामी कुन्दकुन्द मोक्षपाहुडमें कहते हैंदेव गुरुम्मिय भत्तो साहम्मिय संजदेसु अणुरत्तो। । सम्मत्तमुव्यहंतो झाणरओ होइ जोई सो॥ १२ ॥ भावार्थ-जो योगी सम्यग्दर्शनको धारता हुआ देव तथा गुरुकी भक्ति करता है, साधर्मी संयमी साधुओंमें प्रीतिमान है वही ध्यान में रुचि करनेवाला होता है। शिवकोटि आचार्य भगवती आराधनामें कहते हैंअरहतसिद्धचेइय, सुदे य पम्मे य साधुवागे य । मायरियेसूवज्झा-, एसु पक्ष्यणे दसणे चावि ॥ ४६॥ भत्ती पूया वण्णज-, णणं च णासणमवण्णवादस्स । भासादणपरिहारो, दंसणविणो समासेण ॥ ४७ ॥ भावार्थ-श्री अरहंत शास्ता माप्त, सिद्ध परमात्मा, उनकी मूर्ति, शास्त्र, धर्म, साधु समूह, भाचार्य, उपाध्याय, वाणी और सम्यग्दर्शन इन दस स्थानोंमें भक्ति करना, पूजा करनी, गुणोंका वर्णन, कोई निन्दा करे तो उसको निवारण करना, मविनयको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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