SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञानः । [ १०९ भोग न करता । चूंकि वह धर्म तेरे भीतर से नहीं छूटा इसलिये तू गृहस्थ है, कामोपभोग करता है। ये कामभोग अप्रसन्न करनेवाले, बहुत दुःख देनेवाले, बहुत उवायास ( कष्ट ) देनेवाले हैं । इनमें आदिनव ( दुष्परिणाम ) बहुत हैं । जब सार्य श्रावक यथार्थतः अच्छी तरह जानकर इसे देख लेता है, तो वह कार्मोसे अलग, अकुशल धर्मोसे पृथक् हो, प्रीतिसुख या उनसे भी शांततर सुख पाता है। तब वह कामोंकी ओर न फिरनेवाला होता है। मुझे भी सम्बोधि प्राप्ति के पूर्व ये काम होते थे । इनमें दुष्परिणाम बहुत हैं ऐसा जानते हुए भी मैं कार्मोसे अलग शांततर सुख नहीं पासका । जब मैंने उससे भी शांततर सुख पाया तब मैंने अपनेको कामों की ओर न फिरनेवाला जाना | क्या है कामका आस्वाद - ये पांच काम गुण हैं (१) इष्टमनोज्ञ चक्षु से जाननेयोग्य रूप, (२) इष्ट- मनोज्ञ श्रोत्र से जाननेयोग्य शब्द, (३) इष्ट- मनोज्ञ घ्राणविज्ञेय गंध, (४) इष्ट - मनोज्ञ जिल्हा विज्ञेय रस, (५) इष्ट - मनोज्ञ कायविज्ञेय स्पर्श । इन पांच काम गुणोंके कारण जो सुख या सौमनस्य उत्पन्न होता है यही कामका आस्वाद है । कामका आदिनव इसके पहले अध्यायमें कहा जाचुका है। इस सूत्र में निर्ग्रथ (जैन) साधुओंसे गौतमका वार्तालाप दिया है उसको अनावश्यक समझकर यहां न देकर उसका सार यह है । परस्पर यह प्रश्न हुआ कि राजा श्रेणिक बिम्बसार अधिक सुख विहारी है या गौतम ? तब यह वार्तालापका सार हुआ कि राजा मगध श्रेणिक बिम्बसारसे गौतम ही अधिक सुख-विहारी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy