SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बौध वान। [९३ जैन सिद्धांतके वाक्य इस प्रकार हैंपुरुषार्थसिदद्यपायमें कहा हैनिश्चयमिह भूतार्थ व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् । भूतार्थबोधविमुखः प्रायः सर्वोऽपि संपारः ॥५॥ भावार्थ-निश्चय दृष्टि सत्यार्थ है, व्यवहार दृष्टि अनित्यार्थ हैं क्योंकि क्षणभंगुर संसारकी तरफ है । प्रायः संसारके प्राणी सत्य पदार्थके ज्ञानसे बाहर हैं-निश्चयदृष्टिको या परमार्थदृष्टिको नहीं जानते हैं। समयसार कलशमें कहा हैएकस्य मावो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपाती। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥३६-३॥ भावार्थ-व्यवहारनय या दृष्टि कहती है कि यह आत्माकोसे बन्धा हुआ है । निश्चय दृष्टि कहती है कि यह मात्मा कर्मोसे बंधा हुमा नहीं है । ये दोनों पक्ष भिन्न २ दो दृष्टियोंके हैं, जो कोई इन दोनों पक्षको छोड़कर स्वरूप गुप्त होजाता है उसके अनुभवमें चैतन्य चैतन्य स्वरूप ही भासता है। और भी कहा हैय एव मुक्त्वानयपक्षपातं स्वरूपगुप्ता विनसन्ति नित्यं ॥ विकल्पजाळच्युतशान्तचित्तान्त एव साक्षादमृतं पियन्ति ॥२४-३॥ भावार्थ-जो कोई इन दोनों दृष्टियोंके पक्षको छोड़कर स्वस्वरूपमें गुप्त होकर नित्य ठहरते हैं, सम्यक्-समाधिको प्राप्त कर लेते हैं वे सर्व विकल्प जालोंसे छूटकर शांत मन होते हुए साक्षात् मानन्द अमृतका पान करते हैं, उनको निर्वाणका साक्षात्कार होजाता है, वे परम सुखको पाते हैं । और भी कहा है: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy