SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं, मोह नहीं, तृष्णा नहीं, उपादान नहीं हो।।तथा जो विद्वान या ज्ञानपूर्ण हो, जो विरुद्ध न हो व जो प्रपंचमें रत न हो। जैन सिद्धांतमें भी शास्ता उसे ही माना है जो इस सर्व दोषोंसे रहित हो तथा जो सर्वज्ञ हो। स्वात्मरमी हो तथा धर्म भी वीतराग विज्ञान रूप आप्तरमण रूप माना है । तथा सदाचारको सहाई जान पूर्णपने पालनेकी आज्ञा है व साधर्मीसे वात्सल्यभाव रखना सिखाया है। समंतभद्राचार्य रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें कहते हैं माप्तेनोच्छिन्नदोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना । भवितव्यं नियोगेन नान्यथा ह्याप्तता भवेत् ॥ ५॥ क्षुत्पिपासाजरातङ्कनन्मान्तकमयस्मपाः। न रागद्वेषमोहाश्च यस्याप्तः सः प्रकीयते ॥ ६ ॥ शास्ता या आप्त वही है जो दोषोंसे रहित हो, सर्वज्ञ हो व मागमका स्वामी हो । इन गुणोंसे रहित भाप्त नहीं होसक्ता । जिसके भीतर १८ दोष नहीं हों वही आप्त है-(१) क्षुषा, (२) त्रषा, (३) जरा, (४) रोग, (५) जन्म, (६) मरण, (७) भय, (८) माश्चर्य, (९) राग, (१०) द्वेष, (११) मोह, (१२) चिंता, (१३) खेद, (१४) स्वेद (पसीना), (१५) निद्रा, (१६) मद, (१७) रति, (१८) ओक । आत्मस्वरूप ग्रंथमें कहा है रागद्वेषादयो येन जिताः कर्ममहाभटाः । कालचक्रविनिर्मुक्तः स जिनः परिकीर्तितः ॥ २१ ॥ केवबज्ञानबोधेन बुद्धिवान् स जगत्रयम् । मनन्तज्ञानसंकीर्ण त बुद्ध नमाम्यहम् ॥ ३९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy